Nirjala Ekadashi 2025: तिथि, शुभ मुहूर्त और पारण का समय

Nirjala Ekadashi 2025 का व्रत 25 जून, शुक्रवार को मनाया जाएगा। यह एकादशी (Nirjala Ekadashi) हिंदू धर्म में सबसे कठिन और पुण्यदायी एकादशियों में से एक मानी जाती है। Nirjala Ekadashi हर वर्ष ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आती है। 2025 में, एकादशी तिथि 24 जून की शाम(PM) 4:41 बजे शुरू होगी और 25 जून को शाम(PM) 6:14 बजे समाप्त होगी। इस पवित्र तिथि के दौरान भक्त भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और जल सहित सभी प्रकार के अन्न और भोजन का त्याग करते हैं।

शुभ तिथि: ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी

पारण का समय: द्वादशी तिथि पर सूर्योदय के बाद

Nirjala Ekadashi जिसे “भीमसेनी एकादशी” या “पांडव एकादशी” भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में सबसे कठिन और महत्वपूर्ण एकादशियों में से एक मानी जाती है। यह व्रत वर्ष में केवल एक बार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आता है। इस दिन व्रत करने वाले भक्त को पूरे वर्ष की 24 Ekadashi का पुण्य प्राप्त होता है। इस व्रत की विशेषता यह है कि इसमें जल का भी त्याग किया जाता है, यानी पूरे दिन बिना जल पिए उपवास करना होता है।

Nirjala Ekadashi
Nirjala Ekadashi

इस ब्लॉग में हम Nirjala Ekadashi की कथा, महत्व, व्रत की विधि, शुभ मुहूर्त और इससे मिलने वाले लाभों की विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे। यह जानकारी न केवल आपके धर्म और आस्था के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि आपके जीवन में पवित्रता और पुण्य की प्राप्ति के लिए भी लाभकारी है।

Nirjala Ekadashi क्या है?

Nirjala Ekadashi हिंदू धर्म में सबसे कठिन और महत्वपूर्ण एकादशियों में से एक है। निर्जला (Nirjala) का अर्थ होता है “बिना जल के”। इस दिन व्रत करने वाले भक्त न केवल अन्न-जल का त्याग करते हैं, बल्कि पूरे दिन बिना पानी पिए भगवान विष्णु की आराधना करते हैं। इस कठिन व्रत के पालन से 12 महीनों की सभी एकादशियों के व्रत के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।

पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत के भीमसेन के लिए सभी एकादशियों का व्रत करना कठिन था, इसलिए महर्षि वेदव्यास ने उन्हें निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) का व्रत करने की सलाह दी। इस एक व्रत को करने से 24 एकादशियों के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

Nirjala Ekadashi 2025
Nirjala Ekadashi 2025

Nirjala Ekadashi का महत्व

Nirjala Ekadashi का महत्व अत्यधिक है क्योंकि इसे करने से पूरे वर्ष की 24 एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है। यह व्रत उन भक्तों के लिए विशेष रूप से उपयोगी माना जाता है जो प्रत्येक एकादशी पर व्रत नहीं कर सकते। इस एक व्रत को करने मात्र से भक्त को संपूर्ण वर्ष की एकादशियों के पुण्य का लाभ मिलता है।

इस दिन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि व्रती को अन्न और जल का सेवन नहीं करना चाहिए। व्रत के दौरान भगवान विष्णु की पूजा, कथा का श्रवण और दान-पुण्य करना विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। कहा जाता है कि इस व्रत को करने से मृत्यु के समय यमदूत नहीं आते, बल्कि भगवान विष्णु के दूत पुष्पक विमान लेकर आते हैं और भक्त को विष्णु धाम ले जाते हैं।

इस कथा को सुनकर भीमसेन ने निर्जला एकादशी का व्रत किया। उन्होंने पूरे दिन अन्न और जल का त्याग किया और अगले दिन द्वादशी को विधिपूर्वक पारण किया। इस व्रत के फलस्वरूप भीमसेन ने पूरे वर्ष की 24 एकादशियों का पुण्य प्राप्त कर लिया। तभी से इस एकादशी को “भीमसेनी एकादशी” और “पांडव एकादशी” के नाम से जाना जाता है।

Nirjala Ekadashi 2025 का पारण समय

निर्जला एकादशी के व्रत का पारण (व्रत खोलने का समय) 26 जून 2025 को रहेगा। पारण से पहले हरि वासर का समय समाप्त होना आवश्यक होता है। इसलिए, व्रतधारकों को हरि वासर के बाद ही पारण करना चाहिए। पारण के लिए शुभ मुहूर्त का पालन करना अत्यंत आवश्यक माना जाता है, क्योंकि इससे व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त होता है।

Nirjala Ekadashi के लिए आवश्यक सामग्री

निर्जला एकादशी के व्रत और पूजा के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है। इस सामग्री का उपयोग भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना, व्रत के संकल्प और दान-पुण्य के लिए किया जाता है। यहाँ आवश्यक सामग्री की सूची दी जा रही है:

  • पूजा के लिए आवश्यक सामग्री
  1. भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र: पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
  2. चौकी और वस्त्र: भगवान की मूर्ति को रखने के लिए चौकी और उस पर बिछाने के लिए पीला या सफेद कपड़ा।
  3. गंगाजल और शुद्ध जल: भगवान विष्णु को स्नान कराने और पवित्रता बनाए रखने के लिए गंगाजल और शुद्ध जल आवश्यक है।
  4. तुलसी के पत्ते: तुलसी के पत्तों के बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाती है।
  5. फूल और माला: पूजा के लिए ताजे और सुगंधित फूल जैसे गेंदे, गुलाब, कमल आदि की आवश्यकता होती है।
  6. अगरबत्ती और धूप: भगवान विष्णु की पूजा में धूप और अगरबत्ती का विशेष महत्व होता है।
  7. घी और तेल का दीपक: भगवान विष्णु की आरती करने के लिए घी या तेल का दीपक जलाना आवश्यक है।
  8. चंदन और रोली (कुंकुम): भगवान विष्णु के माथे पर तिलक लगाने के लिए चंदन और कुंकुम का उपयोग किया जाता है।
  9. अक्षत (चावल): पूजा के दौरान भगवान को अक्षत (चावल) अर्पित किए जाते हैं।
  10. पंचामृत: दूध, दही, शहद, घी और शक्कर से बने पंचामृत का उपयोग भगवान विष्णु के अभिषेक और भोग के लिए किया जाता है।
  11. सुपारी, पान का पत्ता और लौंग-इलायची: पूजा सामग्री में सुपारी और पान के पत्तों का उपयोग किया जाता है।
  12. फलों का भोग: पूजा के दौरान भगवान को फल अर्पित किए जाते हैं। आम, केला, सेब, अंगूर आदि फल भगवान को भोग लगाने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
  13. मिठाई और मिष्ठान्न: पूजा में भगवान विष्णु को प्रसाद के रूप में मिठाई अर्पित की जाती है, जैसे लड्डू, पेड़ा और अन्य मिष्ठान्न।
  • व्रत के लिए आवश्यक सामग्री
  1. पीले वस्त्र: व्रत करने वाले व्यक्ति को शुद्ध और स्वच्छ पीले वस्त्र पहनने चाहिए क्योंकि पीला रंग भगवान विष्णु का प्रिय रंग है।
  2. पूजा की चौकी: व्रत करने वाले को पूजा करने के लिए एक साफ और पवित्र स्थान की आवश्यकता होती है।
  3. भगवान विष्णु का आसन: पूजा के दौरान भगवान विष्णु के लिए आसन का प्रबंध करें।
  4. मंत्र जप माला: पूजा के दौरान “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करने के लिए तुलसी की माला या रुद्राक्ष की माला का उपयोग करें।
  5. ध्यान और ध्यान सामग्री: पूजा और ध्यान के लिए शांति और एकाग्रता बनाए रखने की आवश्यकता होती है।
  •  दान और पुण्य के लिए आवश्यक सामग्री
  1. दान के लिए वस्त्र: निर्जला एकादशी के दिन ब्राह्मणों, गरीबों और जरूरतमंदों को वस्त्र दान करना शुभ माना जाता है।
  2. अन्न और अनाज: इस दिन अन्न (गेहूं, चावल, जौ आदि) का दान करने का विशेष महत्व है।
  3. पानी के घड़े का दान: Nirjala Ekadashi के दिन पानी के घड़े का दान करना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। यह विशेष रूप से गर्मियों में प्यासे लोगों के लिए जल सेवा के रूप में देखा जाता है।
  4. ताम्र और पीतल के बर्तन: इस दिन ताम्र (तांबे) और पीतल के बर्तन दान करना शुभ माना जाता है।
  5. धन-दक्षिणा: ब्राह्मणों और गरीबों को धन-दक्षिणा के रूप में कुछ धनराशि का दान करें।
  6. वृक्षारोपण का सामान: कुछ लोग इस दिन वृक्षारोपण करके धर्म लाभ प्राप्त करते हैं।
Nirjala Ekadashi

Nirjala Ekadashi व्रत की विधि

निर्जला एकादशी का व्रत हिंदू धर्म में सबसे कठिन और पुण्यदायी व्रत माना जाता है। इसे पूरे वर्ष की 24 एकादशियों के बराबर पुण्य प्राप्त करने वाला व्रत माना जाता है। इस दिन बिना भोजन और पानी के व्रत रखा जाता है, जिसे “निर्जला” कहा जाता है। यहां इस व्रत को करने की विधि और नियमों को तरीके से बताया गया है।

निर्जला एकादशी का व्रत करने के लिए भक्त को निम्नलिखित विधि का पालन करना चाहिए:

  • दशमी तिथि की तैयारी:
  1. व्रत से एक दिन पहले यानी दशमी तिथि पर हल्का और सात्विक भोजन करें।
  2. रात में तामसिक भोजन जैसे लहसुन, प्याज और मांसाहार से बचें।
  3. मन और शरीर को शुद्ध और शांत रखें।
  4. व्रत का संकल्प मन में लें और भगवान विष्णु का ध्यान करें।
  • स्नान और शुद्धिकरण:
  1. व्रत वाले दिन सूर्योदय से पहले उठें और पवित्र स्नान करें।
  2. भगवान विष्णु का ध्यान करें और व्रत करने का संकल्प लें।
  • पूजा स्थल तैयार करें:

घर के पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।

शुद्ध जल, गंगाजल, धूप, दीप, फूल, फल और तुलसी पत्र पूजा सामग्री के रूप में रखें।

  • व्रत का संकल्प लें:

भगवान विष्णु के सामने हाथ जोड़कर व्रत का संकल्प लें।

संकल्प में कहें

“हे भगवान विष्णु! मैं निर्जला एकादशी का व्रत कर रहा/रही हूं। मैं पूरे दिन और रात बिना अन्न और जल के रहूंगा/रहूंगी। कृपया मुझे शक्ति प्रदान करें और इस व्रत का संपूर्ण फल प्रदान करें।”

  • पूजा विधि
  1. भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र को स्नान कराएं और तिलक करें।
  2. पुष्प, फल, तुलसी पत्र, धूप-दीप और भोग अर्पित करें।
  3. विष्णु सहस्त्रनाम, भगवद गीता और एकादशी व्रत कथा का पाठ करें।
  4. “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
  5. पूरे दिन भगवान के भजन, कीर्तन और ध्यान में लगे रहें।
  • कथा का श्रवण:

निर्जला एकादशी की कथा का पाठ करें या उसे सुनें।

  • व्रत का पालन:

इस दिन जल और अन्न का पूर्ण त्याग करें।

दिनभर भगवान विष्णु के नाम का जाप करें और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करें।

  • दान-पुण्य करें:

इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करें।

ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा दें।

  • व्रत के नियम और सावधानियां
  1. इस दिन अन्न और जल दोनों का त्याग करना आवश्यक है।
  2. अगर स्वास्थ्य कारणों से बिना जल के रहना संभव न हो, तो केवल जल पी सकते हैं।
  3. फल, दूध या जल ग्रहण करने पर व्रत का पूर्ण फल नहीं मिलता।
  4. झूठ, क्रोध और बुरी आदतों से बचें:
  5. इस दिन झूठ बोलना, गुस्सा करना और बुरी आदतों का त्याग करना चाहिए।
  6. मन और वाणी की पवित्रता बनाए रखें।
  • रात्रि जागरण करें:

रात्रि के समय भगवान विष्णु के भजन और कीर्तन में भाग लें।

रात्रि जागरण करने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

  • द्वादशी का पारण:
  1. अगले दिन द्वादशी तिथि पर सूर्योदय से पहले स्नान करें।
  2. ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान दें।
  3. इसके बाद ही अपना व्रत तोड़ें और भोजन ग्रहण करें।
  • व्रत के दौरान क्या करें और क्या न करें

क्या करें:

  1. भगवान विष्णु की भक्ति करें।
  2. मंत्र जपें और एकादशी कथा सुनें।
  3. भजन-कीर्तन और रात्रि जागरण करें।
  4. जरूरतमंदों को दान-पुण्य करें।

क्या न करें:

  1. जल और अन्न का सेवन न करें।
  2. झूठ, चोरी, क्रोध और अपवित्र आचरण से बचें।
  3. तामसिक भोजन, लहसुन, प्याज और मांस का सेवन न करें।

Nirjala Ekadashi व्रत कथा

श्री भीमसेन बोले हैं, “पितामह भीष्म, भरत, युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि एकादशी के दिन व्रत तथा दान करते हैं और मुझे एकादशी के दिन अन्न खाने को मना करते हैं। मैं उनसे कहता हूं कि भाई, मैं भक्ति पूर्वक भगवान की पूजा कर सकता हूं और दान दे सकता हूं, परंतु मैं एकादशी के दिन भूखा नहीं रह सकता।” इस पर व्यास जी बोले हैं, “भीमसेन, यदि तुम नरक को बुरा और स्वर्ग को अच्छा समझते हो, तो प्रत्येक मास की एकादशी को अन्न मत खाया करो।”

इस पर भीमसेन बोले हैं, “पिताजी, मैं आपसे पहले भी कह चुका हूं कि मैं एक दिन, एक समय भी भोजन किए बिना नहीं रह सकता। फिर मेरे लिए पूरे दिन का उपवास करना कठिन है। मेरे पेट में अग्नि का वास है, जो अधिक खाने पर शांत होती है। यदि मैं परिश्रम करूं तो वर्ष में एक व्रत अवश्य कर सकता हूं। अतः आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताइए, जिससे मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो।”

श्री व्यास जी बोले हैं, “वायु पुत्र, बड़े-बड़े ऋषि और महर्षियों ने बहुत से शास्त्र आदि बनाए हैं। यदि कलयुग में मनुष्य उन पर आचरण करे, तो अवश्य ही मुक्ति प्राप्त करता है। इनमें धन बहुत कम खर्च होता है। इनमें से जो पुराण का सार है, उसे कहता हूं। मनुष्य को दोनों पक्षों की एकादशी का व्रत करना चाहिए, जिससे उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है।”

श्री व्यास जी के वचनों को सुनकर भीमसेन नरक में जाने के भय से अत्यंत भयभीत हुए और लता के समान कांपने लगे। वह बोले हैं, “पिताजी, मैं अब क्या करूं, क्योंकि मुझे व्रत नहीं हो सकता? अगर आप मुझे कोई एक ही व्रत बताइए, जिससे मेरी मुक्ति हो जाए।”

इस पर श्री व्यास जी बोले हैं, “भीमसेन, वर्ष और मिथुन संक्रांति के मध्य में, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी होती है। उसका निर्जला व्रत करना चाहिए। इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन में 6 मासा से अधिक जल नहीं लेना चाहिए। इस आचमन से शरीर शुद्ध हो जाता है। आचमन में 6 मासा से अधिक जल मद्यपान के समान है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है। यदि सूर्योदय से सूर्यास्त तक मनुष्य जलपान ना करे, तो उसे 12 एकादशी के फल की प्राप्ति होती है। द्वादशी के दिन सूर्योदय से पहले ही उठकर स्नान करना चाहिए और भूखे ब्राह्मण को भोजन देकर यथा योग्य दान देना चाहिए। तत्पश्चात स्वयं भोजन करना चाहिए। इसका फल एक वर्ष की संपूर्ण एकादशी के फल के बराबर है।”

“भीमसेन, स्वयं भगवान ने मुझसे कहा था कि इस एकादशी का पुण्य समस्त तीर्थों और दानों के बराबर है। एक दिन निर्जला रहने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है। जो निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं, उनके मृत्यु के समान भयानक यमदूत नहीं दिखाई देते हैं। उस समय भगवान विष्णु के दूत स्वर्ग से आते हैं और उन्हें पुष्पक विमान पर बिठाकर स्वर्ग ले जाते हैं। अतः संसार में सबसे श्रेष्ठ निर्जला एकादशी का व्रत है।”

“अतः जितने पूर्वक इस एकादशी का निर्जल व्रत करना चाहिए। उस दिन ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। उस दिन गोदान करना चाहिए।” व्यास जी के ऐसे वचन सुनकर भीमसेन ने निर्जला एकादशी का व्रत किया। इस एकादशी को भीमसेन या पांडव एकादशी भी कहते हैं। निर्जला व्रत करने से पहले भगवान की पूजा करनी चाहिए और उनसे विनय करनी चाहिए कि “हे भगवान, आज मैं निर्जला व्रत करता हूं और इसे दूसरे दिन भोजन करूंगा। मैं इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करूंगा, जिससे मेरे सब पाप नष्ट हो जाएंगे।”

“इस निर्जला एकादशी के व्रत से मनुष्य अंत में विष्णु लोक को जाते हैं। और मनुष्य इस दिन यज्ञ करते हैं, उनके फल का वर्णन नहीं किया जा सकता। जो मनुष्य इस दिन अन्न खाते हैं, उन्हें चांडाल समझना चाहिए। वह अंत में नरक में जाते हैं। ब्रह्मा हत्यारे, मद्यपान करने वाले, चोरी करने वाले, गुरु से विश्वासघात करने वाले, सत्य वचन न बोलने वाले, इस व्रत को करने से स्वर्ग को जाते हैं।”

“हे कुंती पुत्र, जो पुरुष या स्त्री इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करते हैं, उनके निम्नलिखित कर्तव्य हैं। उन्हें सर्वप्रथम भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। तत्पश्चात गो दान करना चाहिए। उस दिन ब्राह्मणों को दक्षिणा, मिष्ठान आदि देना चाहिए। निर्जला के दिन अन्य वस्त्र, छत्र, उपान आदि का दान करना चाहिए। जो मनुष्य इस कथा को प्रेमपूर्वक सुनते हैं या पढ़ते हैं, उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

Nirjala Ekadashi Vart Katha

Nirjala Ekadashi व्रत का फल

  1. धन और समृद्धि का वास: जो व्यक्ति इस व्रत को पूरी श्रद्धा और निष्ठा से करते हैं, उन्हें धन, समृद्धि और सुख की प्राप्ति होती है। उनका जीवन सुखमय होता है और भगवान विष्णु की कृपा से वे सभी कठिनाइयों से उबर पाते हैं।
  2.  पारिवारिक सुख और समृद्धि: Nirjala Ekadashi के व्रत से पारिवारिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। घर में सुख-समृद्धि का वास होता है और परिवार के सभी सदस्य स्वास्थ्य और समृद्धि से युक्त होते हैं।
  3. यमदूतों का भय समाप्त: इस व्रत से व्यक्ति का यमदूतों से डर समाप्त हो जाता है। जो लोग इस दिन व्रत करते हैं, वे यमराज के भय से मुक्त हो जाते हैं और मृत्यु के बाद विष्णु लोक में स्थान प्राप्त करते हैं।
  4. स्वर्ग की प्राप्ति: निर्जला एकादशी का व्रत करने से स्वर्ग में स्थान प्राप्त होता है। इस दिन के व्रत को करने से व्यक्ति को समस्त तीर्थों का पुण्य मिलता है और वह स्वर्ग की ओर अग्रसर होता है।
  5. कष्टों और दरिद्रता का नाश: यह व्रत उन लोगों के लिए भी अत्यधिक लाभकारी होता है जो दरिद्रता और जीवन के विभिन्न कष्टों का सामना कर रहे होते हैं। इस व्रत के द्वारा वे सभी कष्टों से मुक्त हो जाते हैं और उन्हें जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति होती है

निर्जला एकादशी के लाभ

  • समस्त पापों का नाश: निर्जला एकादशी का व्रत करने से जीवन के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
  • मोक्ष की प्राप्ति: निर्जला एकादशी व्रत करने से मृत्यु के बाद व्यक्ति को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।
  • स्वास्थ्य लाभ: इस दिन उपवास करने से शरीर को विषैले पदार्थों से मुक्ति मिलती है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है।
  • स्वर्ग की प्राप्ति: इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को मृत्यु के समय यमदूत नहीं बल्कि भगवान विष्णु के दूत पुष्पक विमान लेकर जाते हैं।
  • 24 एकादशियों का फल: जो भक्त पूरे वर्ष की 24 एकादशियों का व्रत नहीं कर सकते, वे केवल निर्जला एकादशी का व्रत करके पूरे वर्ष का फल प्राप्त कर सकते हैं।
  • धन और समृद्धि की प्राप्ति: इस दिन दान करने से विशेष पुण्य मिलता है और घर में धन और समृद्धि का वास होता है।
  • आध्यात्मिक उन्नति: इस दिन भगवान विष्णु की आराधना करने से आत्मिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति होती है।

पांडव और भीमसेन एकादशी क्या है

व्यास जी ने भीमसेन की स्थिति और उनकी मजबूरी को समझते हुए उन्हें एक विशेष व्रत का विधान बताया। उन्होंने कहा कि यदि तुम साल में केवल एक बार निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) का व्रत करोगे, तो इसका फल पूरे वर्ष की सभी एकादशियों के व्रत के बराबर होगा। निर्जला एकादशी के दिन अन्न और जल का पूर्ण त्याग करना पड़ता है।

इस प्रकार, भीमसेन ने अपनी भूख की समस्या के बावजूद धर्म का पालन करते हुए निर्जला एकादशी का व्रत करना स्वीकार कर लिया। इसी कारण यह एकादशी “भीमसेनी एकादशी” या “पांडव एकादशी” के नाम से भी जानी जाती है।

निर्जला एकादशी और अन्य एकादशियों में अंतर

  • उपवास का तरीका

निर्जला एकादशी में जल और भोजन का पूरी तरह से त्याग करना होता है, जबकि अन्य एकादशियों में फल, दूध और पानी ग्रहण किया जा सकता है।

  • व्रत की कठिनाई

Nirjala Ekadashi सबसे कठिन व्रत है क्योंकि इसमें बिना जल और भोजन के रहना पड़ता है, जबकि अन्य एकादशियां तुलनात्मक रूप से आसान होती हैं।

  • व्रत का फल (पुण्य)

Nirjala Ekadashi का व्रत करने से 24 एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है, जबकि अन्य एकादशियों का पुण्य केवल एक एकादशी के लिए मिलता है।

  • पालन करने की अवधि

निर्जला एकादशी वर्ष में केवल एक बार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है, जबकि अन्य एकादशियां साल में 23 बार आती हैं।

  • व्रत का नाम और महत्व

निर्जला एकादशी (Nirjala ekadashi) को भीमसेनी एकादशी और पांडव एकादशी के नाम से जाना जाता है, जबकि अन्य एकादशियों के नाम उनके महत्व के आधार पर अलग-अलग होते हैं।

  • दान और सेवा

निर्जला एकादशी पर जल, वस्त्र, छाता, घड़ा आदि का दान करना शुभ माना जाता है, जबकि अन्य एकादशियों पर सामान्य दान का महत्व होता है।

  • शास्त्रों में मान्यता

शास्त्रों में निर्जला एकादशी को सर्वोच्च एकादशी माना गया है, जबकि अन्य एकादशियों का महत्व अलग-अलग मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए होता है।

  • रात्रि जागरण

निर्जला एकादशी पर रातभर जागकर भजन-कीर्तन करना अनिवार्य माना जाता है, जबकि अन्य एकादशियों में यह वैकल्पिक होता है।

  •  व्रत का उद्देश्य

निर्जला एकादशी का उद्देश्य 24 एकादशियों के फल की प्राप्ति करना है, जबकि अन्य एकादशियां पापों के नाश और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए होती हैं।

  • स्वास्थ्य और वैज्ञानिक दृष्टिकोण

Nirjala Ekadashi में बिना जल और भोजन के रहने से शरीर के विषैले तत्व बाहर निकलते हैं, जबकि अन्य एकादशियों में फल और पानी का सेवन किया जा सकता है, जिससे शरीर को ज्यादा कठिनाई नहीं होती।

यह मुख्य अंतर निर्जला एकादशी और अन्य एकादशियों के बीच स्पष्ट रूप से परिलक्षित करते हैं

Nirjala Ekadashi का धार्मिक दृष्टिकोण

  • पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति: शास्त्रों के अनुसार, निर्जला एकादशी का व्रत सभी एकादशियों का फल प्रदान करता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • भीमसेनी एकादशी: महाभारत के अनुसार, भीमसेन केवल Nirjala Ekadashi का व्रत कर पाते थे क्योंकि वे बिना भोजन के नहीं रह सकते थे। व्यास जी के कहने पर उन्होंने यह व्रत किया, जिससे इस एकादशी को “भीमसेनी एकादशी” भी कहा जाता है।
  • भगवान विष्णु की विशेष कृपा: इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करने से भगवान की कृपा प्राप्त होती है। ऐसा माना जाता है कि निर्जला एकादशी का व्रत करने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।
  • दान का महत्व: इस दिन जल, छाता, वस्त्र, जूते और पंखे का दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। दान करने वाले को जीवन में सुख-समृद्धि और परलोक में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
  • तीर्थ स्नान और व्रत का महत्व: इस दिन तीर्थ स्नान का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि इस दिन किया गया स्नान, दान और व्रत समस्त पापों का नाश कर देता है

एकादशी व्रत और पांडवों की भक्ति

भीमसेन ने देखा कि उनके बड़े भाई युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव सहित सभी पांडव एकादशी के दिन उपवास रखते हैं। वे व्रत के दौरान भगवान की भक्ति और दान-पुण्य में लीन रहते हैं। इन सभी ने भीमसेन को भी व्रत रखने और भोजन न करने के लिए प्रेरित किया।

लेकिन भीमसेन ने स्पष्ट रूप से कहा, “भाई, मैं भगवान की पूजा और दान तो कर सकता हूं, परंतु एकादशी के दिन भूखा नहीं रह सकता। मेरा पेट अग्नि का घर है, जो बिना भोजन के शांत नहीं हो सकता।”

व्यास जी का मार्गदर्शन

भीमसेन के इस कथन के बाद महर्षि वेदव्यास ने उन्हें समझाया। उन्होंने कहा, “भीमसेन, यदि तुम स्वर्ग प्राप्त करना चाहते हो और नरक से बचना चाहते हो, तो प्रत्येक माह की एकादशी को अन्न का त्याग करो।”

व्यास जी के उपदेश को सुनकर भीमसेन ने उत्तर दिया, “हे पितामह! मैं आपसे पहले भी कह चुका हूं कि एक दिन भी बिना भोजन के रहना मेरे लिए असंभव है। मैं एक दिन का व्रत भी नहीं कर सकता। मेरा पेट अग्नि के समान है, जो तभी शांत होती है जब मैं पर्याप्त भोजन कर लेता हूं। हां, अगर कोई ऐसा उपाय हो जिससे मुझे एक दिन व्रत करने से ही स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए, तो कृपया मुझे वह उपाय बताएं।

शिक्षा और संदेश

भीमसेन और वेदव्यास के संवाद से हमें यह सीख मिलती है कि धर्म का पालन करने के लिए इच्छा शक्ति और दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है। इस कथा के माध्यम से यह भी स्पष्ट होता है कि भगवान भक्तों की कठिनाइयों को समझते हैं और उन्हें उनकी सामर्थ्य के अनुसार उपाय प्रदान करते हैं।

निर्जला एकादशी का व्रत कठिन अवश्य है, लेकिन इसका फल संपूर्ण वर्ष की सभी एकादशियों के व्रत के समान माना गया है। इसलिए, जो लोग सभी एकादशियों पर व्रत नहीं रख सकते, वे केवल निर्जला एकादशी का व्रत करके पुण्य प्राप्त कर सकते हैं।

Nirjala Ekadashi 2025: संपूर्ण जानकारी का सारांश

निर्जला एकादशी 2025 हिंदू धर्म की सबसे महत्वपूर्ण और कठिन एकादशियों में से एक है, जो 25 जून 2025 (शुक्रवार) को मनाई जाएगी। इस दिन भक्त भगवान विष्णु की उपासना करते हैं और जल सहित सभी प्रकार के अन्न-जल का त्याग करते हैं। यह व्रत 12 महीने की सभी एकादशियों के बराबर पुण्य प्रदान करता है। इस कारण इसे “भीमसेनी एकादशी” या “पांडव एकादशी” भी कहा जाता है।

पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत के भीमसेन ने इस एकादशी का व्रत किया था क्योंकि वे अन्य एकादशियों का व्रत नहीं कर पाते थे। इस एकादशी पर जल का भी त्याग करना पड़ता है, जो इसे सबसे कठिन बनाता है। व्रत करने वाले व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और अंत में विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। इस दिन दान, ब्राह्मण भोजन और भगवान विष्णु का ध्यान करना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। 2025 में, निर्जला एकादशी का व्रत रखने वाले भक्तों के लिए यह दिन अत्यंत शुभ रहेगा और उन्हें पुण्य, शांति और मोक्ष की प्राप्ति होगी।

निष्कर्ष

निर्जला एकादशी का व्रत हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन जल और अन्न का त्याग करके भगवान विष्णु की पूजा करने से भक्तों को पूरे वर्ष की 24 एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है। भीमसेन जैसे भोजन प्रेमी भी इस व्रत को करने में सफल हुए थे। इस व्रत का पालन करने वाले व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

यदि आप भी भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं और जीवन में पुण्य कमाना चाहते हैं, तो निर्जला एकादशी का व्रत अवश्य करें। इस दिन दान-पुण्य, कथा श्रवण और भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है